Kaun Banega Crorepati

Wednesday, December 23, 2009

उस पार न जाने क्या होगा / हरिवंशराय बच्चन

उस पार  जाने क्या होगा / हरिवंशराय बच्चन...... 

 

 

इस पारप्रिये मधु है तुम होउस पार  जाने क्या होगा
यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का
लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो
बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का
तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो
उस पार मुझे बहलाने का उपचार  जाने क्या होगा
इस पारप्रिये मधु है तुम होउस पार  जाने क्या होगा!

 जग में रस की नदियाँ बहतीरसना दो बूंदें पाती है,

जीवन की झिलमिलसी झाँकी नयनों के आगे आती है,

स्वरतालमयी वीणा बजतीमिलती है बस झंकार मुझे,

मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है

ऐसा सुनताउस पारप्रियेये साधन भी छिन जाएँगे;

तब मानव की चेतनता का आधार  जाने क्या होगा!

इस पारप्रिये मधु है तुम होउस पार  जाने क्या होगा!

 

उतरे इन आखों के आगे जो हार चमेली ने पहने
वह छीन रहादेखोमालीसुकुमार लताओं के गहने
दो दिन में खींची जाएगी ऊषा की साड़ी सिन्दूरी
पट इन्द्रधनुष का सतरंगा पाएगा कितने दिन रहने
जब मूर्तिमती सत्ताओं की शोभा-सुषमा लुट जाएगी
तब कवि के कल्पित स्वप्नों का श्रृंगार  जाने क्या होगा
इस पारप्रिये मधु है तुम होउस पार  जाने क्या होगा!

 दृग देख जहाँ तक पाते हैंतम का सागर लहराता है

फिर भी उस पार खड़ा कोई हम सब को खींच बुलाता है

मैं आज चला तुम आओगी कलपरसों सब संगीसाथी

दुनिया रोती-धोती रहतीजिसको जाना हैजाता है

मेरा तो होता मन डगडगतट पर ही के हलकोरों से

जब मैं एकाकी पहुँचूँगा मँझधार जाने क्या होगा!

इस पारप्रिये मधु है तुम होउस पार  जाने क्या होगा!

Big B

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